एकांत के नीर
पगडंडी सूनी, चौपाल खाली,
खेतों में सोई है हँसी निराली।
यादों की परछाई मन को बुलाए,
बीते हुए पल फिर आँखों में आए।
बहते हैं चुपके, एकांत के नीर,
दिल में छुपाए हैं सपनों के तीर।
न चूल्हे की रोटी, न खावा की बोली,
न टोली में बचपन की किलकारी डोली।
रिश्तों की मिठास कहीं खो गई है,
पर आत्मा की डोर अब भी वही है।
बहते हैं चुपके, एकांत के नीर,
दिल में छुपाए हैं सपनों के तीर।
अंधेरों के पीछे उजियारा सोया,
टूटे सपनों से दीपक भी रोया।
हर आँसू कहता—मत हार मान,
कल फिर खिलेगा उम्मीद का गान।
बहते हैं चुपके, एकांत के नीर,
दिल में छुपाए हैं सपनों के तीर।
बेबसी तोड़े, उम्मीद जोड़े,
जीवन है चलता, हर मोड़ पे आगे।
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